आज बहुत से लोग म्यूच्यूअल फण्ड इन्वेस्टमेंट को अपनी लंबे समय की कमाई का जरिया बना चुके हैं। ऐसे में लोग Debt Fund जैसे कम रिस्क वाले म्यूच्यूअल फण्ड में इन्वेस्ट करना पसंद करते हैं।
अगर आप भी Debt Fund में इन्वेस्ट करने वाले हैं तो आपको इसके बारे में अच्छे से पता होना चाहिए। तो इसीलिए आज हम आपको what is Debt Fund in Hindi के बारे में डिटेल में बताएंगे। जिससे आपको Debt fund की अच्छी जानकारी हो जाएगी।
What is Debt Fund in Hindi?
Debts Funds वह म्यूच्यूअल फंड्स स्कीम हैं जो कि debt securities जैसे गवर्मेंट/कॉर्पोरेट बॉन्ड्स, PSU’s, ट्रेज़री बिल, कमर्शियल पेपर और दूसरे मनी मार्केट सिक्योरिटीज या एसेट आदि में invest करती हैं।
इसे Fixed Income Fund भी कहते हैं। क्योंकि इसमें डेब्ट फण्ड स्कीम द्वारा यह पहले से ही फिक्स कर लिया जाता है कि आपको कितने समय पर कितना ब्याज मिलेगा और उस स्कीम को पूरा होने में कितना समय लगेगा।
जो लोग म्यूच्यूअल फंड्स के ज़रिये बिना किसी रिस्क के रेगुलर प्रॉफिट कमाना चाहते हैं उनके लिए Debt Funds एक बेहतर ऑप्शन साबित हो सकता है।
अगर आप अपने बचत किये हुए पैसों को फिक्स्ड इनकम प्रोडक्ट जैसे बैंक डिपाजिट में सेव करके रख रहे हैं और कम वोलैटिलिटी के साथ एक स्थिर ब्याज रिटर्न्स के रूप में चाहते हैं तो Debt Funds आपके लिए ही बना है। इसमें आपको Fixed deposit से ज्यादा ब्याज मिल सकता है।
क्योंकि यह कम वोलेटाइल है इसलिये यह इक्विटी म्यूच्यूअल फंड्स की तुलना में बहुत कम रिस्की और सुरक्षित है।
Debt Fund कैसे काम करता है?
Debt Fund मनी मार्केट की कई तरह सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करता है। यह ज़्यादातर गवर्मेंट सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करता है जिसमें फण्ड का 75 प्रतिशत हिस्सा बैंक डिपाजिट, बांड्स और ट्रेज़री बिल में इन्वेस्ट करता है।
डेब्ट फण्ड उन्ही सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करता है जिनकी क्रेडिट रेटिंग्स अच्छी होती हैं। क्रेडिट रेटिंग किसी सिक्योरिटी या असेट के द्वारा लिए गये लोन को समय पर भुगतान करने की क्षमता को कहते हैं। यानी वह एसेट किसी तरह का डिफाल्टर नही है।
Debt Fund का फण्ड मैनेजर इसी बात का ध्यान रखता है कि डेब्ट फण्ड के पैसे को उन सिक्योरिटीज या एसेट में इन्वेस्ट किया जाए जिनकी क्रेडिट रेटिंग्स High या बहुत ज्यादा अच्छी है। जिससे वह एसेट उस डेब्ट फण्ड को समय समय पर ब्याज रिटर्न्स के रूप में देती रहे, साथ ही साथ इन्वेस्टमेंट का समय खत्म होने पर डेब्ट फण्ड की कुल इन्वेस्टमेंट को भी रिटर्न्स कर सके।
दूसरी बात इसमें यह है कि डेब्ट फण्ड स्कीम की Maturity या इन्वेस्टमेंट पूरा होने का समय इसके फण्ड मैनेजर के इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी पर भी निर्भर करता है। यानी अगर सिक्योरिटी या एसेट से मिलने वाले ब्याज में गिरावट आ रही है तो वह फण्ड मैनेजर फण्ड को लांग टर्म में इन्वेस्ट करना चाहेगा, जिससे maturity का समय बढ़ जाएगा।
वहीं अगर ब्याज में तेज़ी से बढ़त हो रही है तो फण्ड मैनेजर फण्ड को शार्ट टर्म में इन्वेस्ट करना चाहेगा, जिससे फण्ड की maturity का समय भी कम हो जाएगा।
Debt Fund में किसे इन्वेस्टमेंट करना चाहिये?
Debt Fund अपने इन्वेस्टमेंट को सुरक्षित रखने के लिए तरह तरह के सिक्युरिटीज में इन्वेस्ट करके फण्ड को संतुलित रखने का प्रयास करते है। जिससे फण्ड अच्छा रिटर्न् कमा सके।
हालांकि फण्ड को अधिक सुरक्षित रखने के कारण इसमें रिटर्न् की गारंटी नही होती। लेकिन इसमें लांग टर्म इन्वेस्ट करके रिटर्न् कमाया जा सकता है। डेब्ट फण्ड के रिटर्न्स अक्सर अनुमान से थोड़ा कम होता है।
यह शार्ट टर्म और लांग टर्म दोनों तरह के इन्वेस्टर्स के लिए बेहतर और सुरक्षित है। इसमें शार्ट टर्म यानी जिसमे 3 महीने से ही 1 साल तक के लिए इन्वेस्ट किया जाता है जबकि लांग टर्म जिसमे 3 से 5 साल तक के लिए इन्वेस्ट किया जाता है।
Debt Fund कितने प्रकार के होते हैं?
तरह तरह की सिक्युरिटीज में इन्वेस्ट करने और maturity के कारण इसे कई भागों में बांटा जा सकता है। इसीलिए डेब्ट फण्ड कई तरह के होते हैं। जैसे –
1. Liquid Fund – इस तरह के डेब्ट फण्ड, वह मनी मार्केट सिक्युरिटीज में इन्वेस्ट करते हैं जिनकी Maturity 91 दिन से ज्यादा नही होती। इस तरह के फण्ड शार्ट टर्म में सेविंग एकाउंट से ज्यादा ब्याज रिटर्न् के रूप में देते हैं। यह फण्ड शार्ट टर्म इन्वेस्टर्स के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
2. Money Market Fund – इस तरह के फण्ड ऐसे मनी मार्केट सिक्युरिटीज में इन्वेस्ट करते हैं जिसकी अधिकतम maturity 1 साल की होती है। ये फण्ड शार्ट टर्म में low risk के साथ अच्छा रिटर्न् दे सकते हैं।
3. Dynamic Bond Fund – इस तरह के फण्ड के सिक्योरिटीज से मिलने वाले ब्याज दर के उतार-चढ़ाव के अनुसार फण्ड मैनेजर इस फण्ड के कम्पोजीशन को बदलते रहते हैं। जैसा की इसके नाम से ही पता चलता है।
इसी कारण से ये फण्ड 3 से 5 साल की maturity वाले सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करते हैं। यह फण्ड उन इन्वेस्टर्स के लिए अच्छा है जो मीडियम रिस्क के साथ 3 से 5 साल का इन्वेस्टमेंट करके प्रॉफिट कमाना चाहते हैं।
4. Corporate Bond Fund – इस तरह के डेब्ट फण्ड अपने फण्ड का मिनिमम 80 प्रतिशत हिस्सा हाई क्रेडिट वाले कॉर्पोरेट बांड में इन्वेस्ट करते हैं। यह कम रिस्क वाले इन्वेस्टर्स के लिए बेहतर है।
5. Banking and PSU Fund – इस तरह के डेब्ट फण्ड अपने फण्ड का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा PSU ( Public Sector Undertaking ) और बैंको की सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करते हैं।
6. Income Fund – इस तरह के डेब्ट फण्ड उन डेब्ट सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करते हैं जिसकी maturity 5 से 7 साल तक की होती है। यह डायनामिक बांड फण्ड के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद होते हैं।
7. Gilt Fund – इस तरह के डेब्ट फण्ड अपने फण्ड का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा तरह तरह की maturity वाले सरकारी सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करती हैं। इस तरह के फण्ड में कोई क्रेडिट रिस्क नही होता। हालांकि interest rate ज्यादा होता है।
8. Credit Risk Fund – इस तरह के डेब्ट फण्ड अपने फण्ड का कम से कम 65% हिस्सा कम क्रेडिट रेटिंग्स वाले कॉर्पोरेट बांड्स में इन्वेस्ट करता है। इस तरह के फण्ड में अधिक क्रेडिट रिस्क होता है। हालांकि ये हाई क्वालिटी बांड्स की तुलना में ज्यादा रिटर्न्स देते हैं।
9. Floater Fund – इस तरह के डेब्ट फण्ड अपने फण्ड का 65% हिस्सा फ्लोटिंग रेट सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करते हैं। फ्लोटिंग रेट यानी वह रेट जो मार्केट के आधार पर घटता- बढ़ता रहता है। इस फण्ड में low interest रेट रिस्क होता है।
10. Overnight Fund – इस तरह के डेब्ट फण्ड 1 दिन की maturity वाले डेब्ट सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करती हैं। इस तरह के फण्ड की क्रेडिट रिस्क और interest रेट रिस्क दोनों ही न के बराबर होते हैं इसीलिए इस फण्ड को बेहद सुरक्षित माना जाता है।
इसके अलावा भी कई तरह के डेब्ट फण्ड होते है जैसे –
- अल्ट्रा शार्ट ड्यूरेशन फण्ड ( 3 से 6 महीने )
- लो ड्यूरेशन फण्ड ( 6 से 12 महीने )
- शार्ट ड्यूरेशन फण्ड ( 1 साल से 3 साल )
- मीडियम ड्यूरेशन फण्ड ( 3 से 4 साल )
- मीडियम टू लॉन्ग ड्यूरेशन फण्ड ( 4 से 7 साल )
- लॉन्ग ड्यूरेशन फण्ड ( 7 साल से अधिक समय )
Debt Fund में इन्वेस्ट करने से पहले कुछ ज़रूरी बातें!
Risk in Debt Funds –
डेब्ट फण्ड में तीन तरह के रिस्क होते हैं जैसे,
- Credit Risk – यह सिक्युरिटी के जारीकर्ता के द्वारा मूलधन और ब्याज को न वापस करने के वजह से एक डिफ़ॉल्ट रिस्क है।
- Interest Rate Risk – यह सिक्युरिटी के मूल कीमत पर मिलने वाले ब्याज दरों में बदलाव के कारण रिस्क है।
- Liquidity Risk – यह withdrawal रिक्वेस्ट को पूरा करने के लिए पर्याप्त लिक्विडिटी नही होने पर फण्ड द्वारा उठाया जाने वाला रिस्क है।
Return in Debt Funds
यह इक्विटी फण्ड की तुलना में कम रिटर्न्स देते हैं। आप इससे फिक्स्ड डिपाजिट से ज्यादा भी रिटर्न्स कमा सकते हैं। हालांकि इसमें रिटर्न् की कोई गारंटी नही होती।
डेब्ट फण्ड की NAV (Net Asset Value) ब्याज दरों में बदलाव के कारण बदलती रहती है। जब ब्याज दर बढ़ता है तो फण्ड की NAV घटने लगती है, vice-versa.
Expense Ratio –
डेब्ट फण्ड में इन्वेस्ट करने से पहले यह चीज़ भी ध्यान देना ज़रूरी है। Expanse Ratio वह फ़ीस है जो कि फण्ड मैनेजमेंट के लिए जाता है। डेब्ट फण्ड में ज्यादा रिटर्न् नही मिलते , इसीलिए ज्यादा Expanse ratio अपकी कमाई पर असर डाल सकते हैं। इसलिए कम expanse ratio वाले डेब्ट फण्ड में लंबे समय तक इन्वेस्ट करना चाहिए।
Lock-in Period –
जब आप किसी लॉक इन पीरियड वाले म्यूच्यूअल फण्ड में इन्वेस्ट करते हैं तब आप इन्वेस्टमेंट की रकम को तभी निकाल पायंगे जब तक लॉक इन पीरियड का समय पूरा नही हो जाता। यह लॉक इन पीरियड आपके इन्वेस्टमेंट के पहले दिन से गिना जाता है।
लॉक इन पीरियड 1 साल , 3 साल , 5 साल या कुछ भी हो सकता है। इसे हम फण्ड की maturity भी कह सकते हैं।
डेब्ट फण्ड में फिक्स्ड maturity वाली स्कीम को छोड़कर दूसरे स्कीमों में Lock-in पीरियड नही होता।
Capital Gain Tax –
अगर आप इसमें अपने इन्वेस्टमेंट को 3 साल तक के लिए होल्ड करते हैं तो उस पर होने वाली कमाई पर STCG (short term capital gain) टैक्स लगता है। इसको आपकी आमदनी में जोड़कर टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लिया जाता है।
वहीं दूसरी ओर अगर आप इन्वेस्टमेंट को 3 साल से ज्यादा के लिए होल्ड करते हैं तो उसपे LTCG (long term capital gain) टैक्स लगता है। जो कि 10% है और indexation के साथ 20% लगता है।
Indexation, इन्वेस्टमेंट पर होने वाली कमाई पर टैक्स कम करने का एक जरिया है। इसमें टोटल इन्वेस्टमेंट को महंगाई के अनुपात में बढ़ा लिया जाता है। जिससे इन्वेस्टमेंट की रकम बढ़ जाती है और मुनाफा कम दिखने लगता है। जिससे टैक्स पर देनदारी भी कम हो जाती है।
कुछ सवाल और उनके जवाब
Equity mutual fund और debt mutual fund में क्या फर्क है?
Equity mutual fund में Company’s के stocks में इन्वेस्ट किया जाता है। जबकि डेब्ट फण्ड में government और corporation आदि के बांड और सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट किया जाता है।
ITR 2 में Debt mutual fund से आए short term capital gain को कहाँ दिखाना चाहिए?
Schedule-CG Section A में आपको Debt mutual फण्ड से आए short term capital gain को दिखाना है।
ITR 2 में Debt mutual fund से आए Long term capital gain को कहाँ दिखाना चाहिए?
Schedule-CG Section B में आपको Debt mutual फण्ड से आए short term capital gain को दिखाना है।
Equity और debt mutual fund में क्या बेहतर है?
ये आपके ऊपर निर्भर करता है की आप कितना रिस्क ले सकते है।
Ultra short term debt fund क्या है?
Ultra short term debt fund में उन scheme में invest किया जाता है जिनकी duration 3 – 6 महीने की होती है।